Supreme Court: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक और महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि पति का पत्नी की कमाई या स्त्रीधन पर कोई स्वामित्व अधिकार नहीं है। इस फैसले ने महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है और उनके वित्तीय आत्मनिर्भरता को कानूनी रूप से मान्यता दी है।
स्त्रीधन की परिभाषा
‘स्त्रीधन’ एक ऐसा शब्द है जो महिलाओं को मिलने वाली उन संपत्तियों को दर्शाता है जो उन्हें शादी से पहले, शादी के समय या शादी के बाद उनके माता-पिता, रिश्तेदारों या ससुराल वालों से उपहार में मिलती हैं। इसमें शामिल हो सकते हैं:
- सोने-चांदी के गहने
- नकदी
- अचल संपत्ति (जैसे घर या जमीन)
- वाहन
- कीमती वस्तुएँ
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ये सारी संपत्तियाँ पूरी तरह से महिला की व्यक्तिगत संपत्ति होती हैं और इन पर पति का कोई अधिकार नहीं होता।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
2024 में आए इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा कि पति अपनी पत्नी की संपत्ति को सिर्फ संकट के समय अस्थायी रूप से इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन उसे इसका उपयोग करने के बाद उसे लौटाना अनिवार्य है। यदि वह ऐसा नहीं करता और संपत्ति अपने पास बनाए रखता है, तो यह ‘आपराधिक विश्वासघात’ की श्रेणी में आता है और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के अंतर्गत मामला दर्ज हो सकता है।
यह फैसला उस स्थिति में आया जब एक महिला ने अपने पति के खिलाफ स्त्रीधन की वापसी के लिए अदालत में अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि पति को पत्नी के स्त्रीधन का रक्षक माना जा सकता है, स्वामी नहीं।
कानूनी सुरक्षा के प्रावधान
भारत में महिलाओं के संपत्ति अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई विधिक प्रावधान हैं:
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 406 – यदि कोई व्यक्ति (जिसमें पति भी शामिल है) पत्नी की संपत्ति को बिना अनुमति अपने पास रखता है, तो उसे आपराधिक विश्वासघात माना जाता है।
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 – यह अधिनियम महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है और इसमें वित्तीय अधिकारों की रक्षा की व्यवस्था भी है।
- सिविल अदालत में दावा – यदि महिला को उसकी संपत्ति वापस नहीं दी जाती है, तो वह सिविल कोर्ट में संपत्ति वापसी के लिए वाद दायर कर सकती है।
- उज्ज्वला और सुकन्या जैसी सरकारी योजनाएँ – ये योजनाएँ महिलाओं के वित्तीय सशक्तिकरण को बढ़ावा देती हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।
फैसले के सामाजिक और कानूनी प्रभाव
यह निर्णय महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इसके मुख्य प्रभाव इस प्रकार हैं:
- महिलाओं की संपत्ति पर नियंत्रण सुनिश्चित करना – यह स्पष्ट करता है कि शादी के बाद भी महिला की संपत्ति उसी की होती है।
- पति के अवैध कब्जे की रोकथाम – निर्णय के अनुसार यदि पति जबरदस्ती संपत्ति पर कब्जा करता है, तो वह दंडनीय अपराध होगा।
- कानूनी जागरूकता में वृद्धि – इस फैसले ने समाज में महिलाओं के कानूनी अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ाई है।
क्या करें यदि पति स्त्रीधन पर दावा करे?
यदि किसी महिला को लगता है कि उसका पति या ससुराल पक्ष उसकी संपत्ति पर कब्जा कर रहा है, तो वह निम्नलिखित कानूनी कदम उठा सकती है:
- पुलिस में शिकायत दर्ज करें – सबसे पहले नजदीकी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवाएं।
- महिला आयोग से संपर्क करें – राज्य या राष्ट्रीय महिला आयोग से सहायता मांगी जा सकती है।
- कानूनी सहायता लें – मुफ्त या सरकारी कानूनी सहायता केंद्रों से मदद ली जा सकती है।
- सिविल केस दायर करें – संपत्ति की वापसी के लिए कोर्ट में मामला दायर किया जा सकता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल महिलाओं के कानूनी अधिकारों को सुदृढ़ करता है, बल्कि समाज में एक सकारात्मक संदेश भी देता है कि विवाह किसी महिला के व्यक्तिगत अधिकारों को समाप्त नहीं करता। महिलाएँ अपनी संपत्ति की पूरी मालकिन होती हैं, और कोई भी—even पति—उस पर दावा नहीं कर सकता। यह फैसला नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक मजबूत कदम है और आने वाले समय में यह कई महिलाओं को प्रेरित करेगा कि वे अपने अधिकारों को समझें और उनकी रक्षा करें।